Saturday, May 17, 2008

डगर !!



ए डगर तू साथ मेरे क्यों ना चलती है !
दौड़ कर मै आऊँ तू आगे निकलती है !!


कर रहा दीदार जब महसूस उसको हो !
बाँध कर जुड़ा खुला वो संभलती है !!


आ बदल दे आज इस आंधी का रुख !
रोज मेरे गाँव से ही ये निकलती है !!


होगा कुछ मीठा पानी समन्दर का !
सोंच कर ये रोज वो गागर बदलती है !!


काम है बाकि बहुत जल्दी से निपटा लें !
जिंदगी ये रेत सी मुट्ठी फिसलती है !!


कहते जो पत्थर उन्हे आके अब देखो !
मेरे एक अश्क से भी वो पिघलती है !!


तोड़कर कल ला दिये तारे बहुत !
चाँद लादूँ अब उसे जिद पे मचलती है !!

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