Monday, July 16, 2007

लौट आया हु मै इन पग्डन्डीयो पर !!



छोड़कर सडको को पक्की आज फिर से !
लौट आया हु मै इन पग्डन्डीयो पर !!

थे जन्हा सीखे नह्ने पैर चलना !
देखकर सूरज उगता आंख मलना !!
फिर उन्ही सुबहों का सलाम लेने !
लौट आया हु मै इन पग्डन्डीयो पर !!

झूठ और फरेब के उस शहर से !
कलि रातों और उन धुंधली सहर से !!
पाने को अपना फिर इमान खोया !
लौट आया हु मै इन पग्डन्डीयो पर !!

जिन्दगी कि दौड़ मे दिल कितने टूटे !
पाने मे शोहरत सभी अपने थे छुटे !!
हाथ फिर अपनो के छुटे थमने को !
लौट आया हु मै इन पग्डन्डीयो पर !!