Thursday, April 4, 2013

"बाई"



तुमसे हि सम्रधि अपनी , तुमसे जीवन कि गहराई  |
वन्श व्रक्ष फल फूल रहा है , क्योकि तुम इसकि जड़ "बाई" ||

तुमने पहला कदम बडाया, परिवर्तन का बीज लगाया |
आज घना है वन्श व्रक्ष, नव पीडी को देता छाया |
एक तुम्हारी पहल ने "बाई" , हमको आज दुनियां  दिखलाई ||


तुमने सदा प्रेम बरसाया , सबको अपने साँथ मिलाया । 
एक डोर से बाँधा सबको, संयुक्ता का पाठ  पड़ाया  ।
एकजुट परिवार खड़ा है , तुमने ऐसी सीख सिखाई ॥

छोड़ चली तुम आज हमें ,  यादों के संग  रह जाऊंगा ।
"बाई से कह दूँगा " अब ये, ना  किसी से कह पाउँगा ।
हाथ जोड़ आँखों में आंसू , देता तुझ को पूर्ण विदाई ॥

नहीं साँथ ये सोच के अब , मन व्याकुल हो जाता है ।
सूना आँगन , खाली कमरा ,बस तेरी याद दिलाता है ।
गर पुनर जन्म दो ईश्वर, मेरे घर ही आये "बाई" ॥ 

वन्श व्रक्ष फल फूल रहा है , क्योकि तुम इसकि जड़ "बाई" ||


Wednesday, August 31, 2011

तुम नदी सी


तुम चंचल सरल नदी सी बहती रहो !
ना रुको ना थाको, ना बांध में बंध झील के दर्द को सहती रहो !!

चीर पर्वतो का सीना कल कल बहो !
मन को दे ठंडक , ऐसी शीतल रहो !!
आस्था की ज्योत बन , ह्रदय में रहती रहो !

तुम्हे ना लड़ना पड़े निर्मलता बचने को
ना होना पड़े विवश अस्तित्व मिटने को !!
मुस्काती लहरों से अपनी कहानी कहती रहो !

भोर का संगीत बन, झरनों का गीत बन !
जाके सागर से मिलो , हमसफ़र मनमीत बन !!
उद्गम से विलय तक , हर जीव की महती रहो !

Thursday, February 24, 2011

जागा ईमान



फिर जागा ईमान मेरा सोया सोया !
दर्पण मे देखा इंसान मेरा खोया !!

भूला था हस्ती अपनी अब याद मुझे !
फोड़ा घड़ा अभिमान का सर रख जो ढोया !!

यूँ बदले हालात कि हँसना भूल गये !
रोते रोते सोया जग के फिर रोया !!

दाग न झूठी शोहरत का कोई रह जाये !
अपने आंसू मन का दर्पण फिर धोया !!

आयी फसल तो मुह लटका के बैठा क्यों !
कटेगा तू अब जो तुने तब बोया !!

जाते जाते दर्पण वो दिखला ही गया !
चहरा देख के असली अपना मै रोया !!

दिल पे निशा जो छोड़ा उसने कैसे मिटे !
हर एक कोना , आंगन , बिस्तर सब धोया !!

Sunday, February 13, 2011

जीवन संगनी



तुम हो मेरा प्रथम अंतिम , दिन पहर पल पल का प्रेम !
तुम से मेरी हर ख़ुशी , तुम ही मेरे दिल का चैन !!

तुम सुनहरी सुबह मेरी, तुम गुलाबी मेरी शाम !
दोपहर मे तुम ठंडक , रातों का मेरे आराम !!
तुम बसंती बहार , ग्रीष्म मे ठंडी बयार !
शीत धुप गुनगुनी , सावन पहली फुहार !!
लगता है जैसे तुम , इश्वरीय कोई देन !

साथ जब से तू चली , जीवन हुआ मेरा बहार !
हर ख़ुशी है साँथ मेरे, मिल गया जब तेरा प्यार !!
बस युँही अब साथ चल , हाथों मे ले मेरा हाथ चल !
खुशबू बन महका दे दिन , चाँद बन हर रात चल !!
तुझसे हो मेरा दिन शुरू, तुझको पे ख़त्म हो मेरी रैन !

मेरी जीवन संगनी , प्रेम दिवस पे है वचन !
तन की अंतिम स्वास तक , तुम बसी हो मेरे मन !!
तुम ही मेरी प्रीत हो , भोली चंचल मीत हो !
मेरे होंठो पर सजा ,प्रेम का हर गीत हो !!
तुझको देख मै जीयूँ , साथ तेरे बंद हो नैन !

तुम से ही मेरी हर ख़ुशी , तुम ही मेरे दिल का चैन !!

Monday, November 8, 2010

प्रभु भावांजलि



सब छोड़ यंही वो चल गए , हमे देकर कई दुआऐं !
मधु यादेँ उनकी साथ लिए, चलो प्रभु गुण हम सब गायेँ !!

वो पंडित महा ग्यानी थे , पर बिलकुल ना अभिमानी थे !
जीवन सादगी लिए हुए , एक सरल सहज कहानी थे !!
ना कभी शोक चहरे पे दिखा, अंतिम पल मे भी मुस्काए !

सब से स्नेह दिखाते थे , प्रेम से पास बिठाते थे !
जब मूश्किल जीवन राह लगी , वो मन उत्साह बढ़ाते थे !!
सब से कहते प्रयास करो , हर मंजिल फिर मिल जाये !

जीवन उनका मुस्कान भरा, हर्दय जिनके था प्रेम भरा !
आशीर वचन उनंके पाकर जीवन है अपना हरा भरा !!
आशीर्वाद से उनंके हर पल कुटुम्भ वृक्ष युँही लहराए !

हमें उनकी कमी सताती है , बाते अश्रु ले आती है !
सुना आंगन सुनी कुर्सी , बस उनकी याद दिलाती है !!
गर पुनर जन्म हो तो इस्वर, उनको फिर इस आंगन लाये !

Sunday, January 17, 2010

विवाह



आंगन में खुशियाँ लहरायेँ, हर मन हो उत्साह !
दो तन जब एक मन हो जायें तब हो पूर्ण विवाह !!

बाजे ढोलक ढोल मंजीरे , बन्ना बन्नी शोर !
बंध जायें दो परिवारों में एक प्रेम की डोर !!
थाम के हाथ चले नव पंछी , नव जीवन की राह !

सात वचन मै दू तुमको, ले हम फेरे सात !
साँथ रहें एक मन होकर हम, शीत ग्रीष्म दिन रात !!
प्रेम हो इतना हम दोनों मे ना हो जिसकी थाह !

धन का कोई लेन देन ना मन का हो बस मोल !
रिश्तों मे ना ऊँच नीच हो प्रेम के हों बस बोल !!
मधुर मेल हो परिवारों का सबकी ये हो चाह !

छोड़ पिता का घर आँगन आयी मेरे परिवार !
मै कर्तव्य तुम्हारे बाँटूँ अपने दूँ अधिकार !!
हर खुशियाँ तुम को दे पाऊँ, सुख से हो जीवन निर्वाह !

दो तन जब एक मन हो जायें तब हो पूर्ण विवाह !!

Sunday, October 4, 2009

बाबूजी



जीवन पथ पर प्रथम चरण तुमने ही चलाया बाबूजी !
क ख ग का पहला अक्षर तुमने सिखाया बाबूजी !!

कौन सही और कौन ग़लत मुझको ये भी भान न था !
भले बुरे का भेद जगत मे तुमने बताया बाबूजी !!

बालकपन मे जब हम भटके मार्ग दिखाया बनके पिता !
और जवानी मित्र बनाकर गले लगाया बाबूजी !!

अपने बच्चों की खातिर तुमने हर पल त्याग किया !
पितृ धर्म को पूर्ण रूप मे तुमने निभाया बाबूजी !!

जीवन के इन संघर्षो मे जब भी लगा की तनहाँ हूँ !
सांथ हो तुम ये हाथ पकड़ कर मुझे जताया बाबूजी !!

जब भी टूटने लगा हौसला और ये मन कमजोर हुआ !
तेरी कविता पड़कर साहस पुनः जगाया बाबूजी !!

रहूँ दूर मे तुझसे से माँ से पर मन आंगन बसता है !
देखूँ तुम्हे जब जब घर आऊँ मन मुस्काया बाबूजी !!