Thursday, February 24, 2011

जागा ईमान



फिर जागा ईमान मेरा सोया सोया !
दर्पण मे देखा इंसान मेरा खोया !!

भूला था हस्ती अपनी अब याद मुझे !
फोड़ा घड़ा अभिमान का सर रख जो ढोया !!

यूँ बदले हालात कि हँसना भूल गये !
रोते रोते सोया जग के फिर रोया !!

दाग न झूठी शोहरत का कोई रह जाये !
अपने आंसू मन का दर्पण फिर धोया !!

आयी फसल तो मुह लटका के बैठा क्यों !
कटेगा तू अब जो तुने तब बोया !!

जाते जाते दर्पण वो दिखला ही गया !
चहरा देख के असली अपना मै रोया !!

दिल पे निशा जो छोड़ा उसने कैसे मिटे !
हर एक कोना , आंगन , बिस्तर सब धोया !!

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