Sunday, October 4, 2009

बाबूजी



जीवन पथ पर प्रथम चरण तुमने ही चलाया बाबूजी !
क ख ग का पहला अक्षर तुमने सिखाया बाबूजी !!

कौन सही और कौन ग़लत मुझको ये भी भान न था !
भले बुरे का भेद जगत मे तुमने बताया बाबूजी !!

बालकपन मे जब हम भटके मार्ग दिखाया बनके पिता !
और जवानी मित्र बनाकर गले लगाया बाबूजी !!

अपने बच्चों की खातिर तुमने हर पल त्याग किया !
पितृ धर्म को पूर्ण रूप मे तुमने निभाया बाबूजी !!

जीवन के इन संघर्षो मे जब भी लगा की तनहाँ हूँ !
सांथ हो तुम ये हाथ पकड़ कर मुझे जताया बाबूजी !!

जब भी टूटने लगा हौसला और ये मन कमजोर हुआ !
तेरी कविता पड़कर साहस पुनः जगाया बाबूजी !!

रहूँ दूर मे तुझसे से माँ से पर मन आंगन बसता है !
देखूँ तुम्हे जब जब घर आऊँ मन मुस्काया बाबूजी !!

Thursday, January 29, 2009

मन सरीता !!




अंश अपने मन का कर तुझको को समर्पित !
लिख रहा तेरे लिए मन की सरीता !!

है बहुत लिखना मगर शब्द कम है !
भावना के बोल और मन की कलम है !!
अपने मन मे जो तेरी मूरत बसाई !
वो नही मिटती किसी से भी मिटाई !!
तुम ही मेरे मन की हो पहली करीता !

जब अकेला था जीवन डगर मे !
मित्र बन चलदी संग तुम सफर मे !!
क्या हूँ मै मुझको तुमने बताया !
और जब भटका कही तुमने बचाया !!
जान पाया तुमसे ही क्या है वनीता !

जो मिला तुमसे तेरा उपकार समझूँ !
जो मिले तुमसे तुम्हारा प्यार समझूँ !!
चाँहू सब लौटाना इस जीवन सफर मे !
हाथ तेरा थाँमू हर मुश्किल डगर मे !!
है दुआ तुम रहो हर दम सस्मिता !

लिख रहा तेरे लिए मन की सरीता !!