Tuesday, June 3, 2008

जोकर !!



हँसता ख़ुद और खूब हँसाता , कहते सब उसको जोकर !
कभी उचकता कभी संभलता , फिर गिरता खाकर ठोकर !!

नए नए चहरे लगा , वो नाँच दिखाता है !
पर उसका असली चहरा , कही नजर ना आता है !!
ठोकर पे सब मुसकाए , आंसू उसके पानी लगता !
मातम उसका मनोरंजन , रोने पे ये जग हँसता !!
नये नये रंग दिखलाता , अपना असली रंग खो कर !
हँसता ख़ुद और खूब हँसाता , कहते सब उसको जोकर !

डरता उसका चहरा भी , सबको हँसी दिलाता है !
झूले से बेखोफ कूदता , पर मन मे घबराता है !!
घर उसके मातम भी हो , पर वो हँसता ही दिखता !
भूखे बच्चों की खातिर , वो जोकर बन फिर बिकता !!
भूल सभी गम चल देता , जो दुनिया चाहे वो हो कर !
हँसता ख़ुद और खूब हँसाता , कहते सब उसको जोकर !

इस रंगी चहरे के पीछे , मुर्झाया एक चहरा है !
मायूसी की चादर है , आंखो मे काला घेरा है !!
गौर से देखो हंसती आँखे , उसकी हालत बताती है !
मजबूरी भी कभी कभी , जोकर बना हँसाती है !!
पर फिर भी वो खेल दिखाता , अपने आँसू मुह धोकर !
हँसता ख़ुद और खूब हँसाता , कहते सब उसको जोकर !

पंछी !!



उड़ते परिंदे पे निशाना
साधा ही था
की आवाज आयी ,

पापा हमे भी उड़ना सिखाओ .
हमे भी असमान मे जाना है
चाँद तारों को पाना है ..

सुनकर ये खयाल आया ,
की पंछी उड़ने का हौसला देता है..
हवाओं को चीर आगे बडो ,
पंख फैला कर कहता है ...

गर गिर गया आज मेरे निशाने से,
तो कौन देगा हौसला उड़ने का ..
कौन कविताओ मे बनेगा प्रतीक,
आगे बड़ने का..

फिर शायद मेरी बेटी भी ना कहे
उससे उड़्ना है ,
आगे बड़ चाँद तारे
मुट्ठी मे करना है..

इन्ही सोच मे
हाथ थम गए,
और असमान का पंछी
छितिज मे ओझल हो गया ...

Monday, June 2, 2008

बम विस्फोट हुआ !!



शाम सुनहरी हँसते चहरे , कहीँ आरती अजान दुआ !
लौट रहे थे पंछी घर को , सूरज पश्चिम ओंट हुआ !!
उभरे तब आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !
बिखरी चिथडों मे लाशें , फैला रक्त रुदन धुआँ !!

कुछ पल फैला सन्नाटा , फिर दशों दीशा चीत्कार उठी !
देख नजारा दहशत का , हर नयन अश्रु बौछार उठी !!
बहा लहू पानी सा , कदम कदम पे लाश पड़ी !
खैल घिनौना खेल यहाँ , अभिमानित सी मौत खड़ी !!
कुछ वह्सी लोगों मे फिर , मानव बस एक नोट हुआ !
उभरे कुछ आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !!

बचे हुए जब संभले भागे , जो घायल उन्हें बचाने को !
बीछडे भगदड़ मे परिजन , मृत या जीवीत मिलाने को !!
उड़ा कहीँ पैर किसी का , खो गयी कहीँ नयन ज्योति !
सन्नाटा कानो ने ओड़ा , दूर कही वाणी लौटी !!
घाव लिए हिचकी भर रोता , जीवन मन चोट हुआ !
उभरे कुछ आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !!

ढूंड रहे खोया जो अपना , घायलों के डेरो मे !
मिला नही जब जीवीत ढूंडे , लाशों के ढेरों मे !!
कही किसी का लाल मिला , कही मिला घायल भाई !
कुछ लोगो की किस्मत ना, मृत परिजन देह आयी !!
कोई म्रत्यु वरन हुआ , कोई जीवन ओंट हुआ !
उभरे कुछ आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !!

फिर भोर भई अगली , जो बचे वापस काम चले !
दो मिनट हुआ मोन , कुछ जगह शोक फूल डले !!
फिर चला घोशना दौर , यहाँ स्मारक बनवायेंगे !
हर घायल को दुर्घटना की, छतिपुर्ती दिलवाएंगे !!
कुछ नेता मृत घर पहुचे, जीवित परिजन एक वोट हुआ !
हर बार यही होता है , जब जब बम विस्फोट हुआ !!

समटी लाशों के टुकडों मे , किसका मजहब कौन कहे !
पटा पड़ा फर्शो पे लहू , क्या उसमे कोई धर्म बहे !!
गहरे जख्मो ने कभी क्या , अपनी जात बताई है !
निर्दोशो की बलि चडै , कैसी जेहाद बनाईं है !!
क्या किलकारी मे राम राम, या अल्लाह अल्लाह बोध हुआ !
तो फिर क्यों मजहब के नाम , एक और विस्फोट हुआ !!