Tuesday, June 3, 2008

पंछी !!



उड़ते परिंदे पे निशाना
साधा ही था
की आवाज आयी ,

पापा हमे भी उड़ना सिखाओ .
हमे भी असमान मे जाना है
चाँद तारों को पाना है ..

सुनकर ये खयाल आया ,
की पंछी उड़ने का हौसला देता है..
हवाओं को चीर आगे बडो ,
पंख फैला कर कहता है ...

गर गिर गया आज मेरे निशाने से,
तो कौन देगा हौसला उड़ने का ..
कौन कविताओ मे बनेगा प्रतीक,
आगे बड़ने का..

फिर शायद मेरी बेटी भी ना कहे
उससे उड़्ना है ,
आगे बड़ चाँद तारे
मुट्ठी मे करना है..

इन्ही सोच मे
हाथ थम गए,
और असमान का पंछी
छितिज मे ओझल हो गया ...

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