Wednesday, August 31, 2011

तुम नदी सी


तुम चंचल सरल नदी सी बहती रहो !
ना रुको ना थाको, ना बांध में बंध झील के दर्द को सहती रहो !!

चीर पर्वतो का सीना कल कल बहो !
मन को दे ठंडक , ऐसी शीतल रहो !!
आस्था की ज्योत बन , ह्रदय में रहती रहो !

तुम्हे ना लड़ना पड़े निर्मलता बचने को
ना होना पड़े विवश अस्तित्व मिटने को !!
मुस्काती लहरों से अपनी कहानी कहती रहो !

भोर का संगीत बन, झरनों का गीत बन !
जाके सागर से मिलो , हमसफ़र मनमीत बन !!
उद्गम से विलय तक , हर जीव की महती रहो !