तुम चंचल सरल नदी सी बहती रहो !
ना रुको ना थाको, ना बांध में बंध झील के दर्द को सहती रहो !!
चीर पर्वतो का सीना कल कल बहो !
मन को दे ठंडक , ऐसी शीतल रहो !!
आस्था की ज्योत बन , ह्रदय में रहती रहो !
तुम्हे ना लड़ना पड़े निर्मलता बचने को
ना होना पड़े विवश अस्तित्व मिटने को !!
मुस्काती लहरों से अपनी कहानी कहती रहो !
भोर का संगीत बन, झरनों का गीत बन !
जाके सागर से मिलो , हमसफ़र मनमीत बन !!
उद्गम से विलय तक , हर जीव की महती रहो !
1 comment:
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार
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