Friday, May 25, 2007

जिन्दगी कि दौड़ !!


दिन भी मेरे रात से तन्हा यहा है !
फर्क इतना है कि सन्नाटे नही है !!

गूंजती है हर तरफ आवाज लेकिन !
दिल को छुले वो याहाँ बाते नही है !!

दिखते है हर रोज कितने ही चहरे !
पर नजर अपने कोई आते नही है !!

जमती है हर शाम कितनी ही महफ़िल !
दोस्तो कि वो मुलाकते नही है !!

खो गए है दिन मेरे अब सुकू के !
चेन से सोता था वो राते नही है !!

जिन्दगी कि दौड़ मे आगे हु इतना !
लोटतै रस्ते नजर आते नही है !!
फर्क इतना है कि सन्नाटे नही है !!!!