Thursday, May 8, 2008

रब बदला !!



न हम बदले न तुम बदले, मगर लगता है सब बदला !
ख़बर ना हम को लग पाई , जहाँ ये जाने कब बदला !!

थी बस ये आरजू दामन मेरे , दो चार खुशीयाँ हो !
हे मेरी हर दुआ जायज, मगर लगता है रब बदला !!

बहुत गुजरे तमन्ना ले , की एक दीदार तेरा हो !
न आए तुम कभी दर पे , तो रस्ता हमने अब बदला !!

मैं चलता कुछ कदम तो ओर , पर ऐसी लगी ठोकर !
करू क्या बात गैरों की , के रंग अपनों ने जब बदला !!

न मझधारो पे मै हारा , मगर डूबा किनारे पे !
नजर आया ही था साहिल, हवाए रुख के तब बदला !!

कभी हर दिल मे जीता था , के हर चहरे पे हँसता था !
हुआ विरान मरघट सा , शहर ये जाने कब बदला !!

न हम बदले न तुम बदले, मगर लगता है सब बदला !

2 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

ख्याल अच्छे हैं. निरन्तरता से शिल्पगत त्रुटियां ठीक हो जाएगी. आप सृजनशील रहें शुभकामनाएं

Anonymous said...

Kaafi acchi kavita hai,
bhaav kaafi acche aa rahe hai,
Aur kavita ya sher kaa mere khyaal se jo maksad hota hai vo poora ho raha hai,
Ek sujaav hai, kavita kisi ek rang ki nahi honi chahiye, usme itni baat ho ki saare rang dikhe..