Thursday, May 1, 2008

तुम आए ना ख़त कोई !!



राह तकी सूरज सर तक , हर आहट आंगन दौड़ गयी !
आस लगी आओगे पर , ना तुम आए ना ख़त कोई !!

रोली हल्दी थाल सजायी , घीसा चंदन बाती बनाईं !
आओ द्वार आरती उतारू , भर घी दीपक जोत जलाई !!
माथे तिलक लगाती पर , ना तुम आए ना ख़त कोई !

लीपा आंगन ओटली धोली , दरवाजे मांडी रंगोली !
थके तेरे पैरो पे लगाने , थोडी सी महंदी भी घोली !!
अपने हाथ लगाती पर , ना तुम आए ना ख़त कोई !

तेरी पसंद की साग बनाईं , जूने चावल खीर पकाई !
आते गरम पूरी तल देती , जला के चूल्हा रखी कडा़ई !!
अपने हाथ खिलाती पर , ना तुम आए ना ख़त कोई !

पीपल नीचे खाट लगाई , ढीली निमार कल कसवाई !
थक कर लेटोगे कुछ पल , हाथ बुनी दरी बिछाई !!
आंचल हवा झिलाती पर , ना तुम आए ना ख़त कोई !

हर दिन यूं ही राह तकी , बरस गए पर आस बची !
अंत साँस तक इन्तजार मे , पीपल नीचे खाट रखी !!
आज हुई दरवाजे दस्तक , तुम आए पर मै सोई !

आस लगी आओगे पर , ना तुम आए ना ख़त कोई !!

3 comments:

रश्मि प्रभा... said...

एक उम्मीद में कितनी ज़िन्दगी जीता है,
कितने ख्यालों को साथ लिए चलता है .......
आदमी भी क्या चीज़ है!
बहुत अच्छी........

मेनका said...

jab tak aasha hai,intejar hai..tab tak yah jivan bhi hai.
Bahut hi sundar kavita hai.

priyanka mishra said...

mumumi kah rahi hai ki tu lekin pahle hi aa jana.