Monday, April 28, 2008

परी या पगली !!



क्या लिखुँ उसके बारे मे, शब्द मेरे कम पड़ जाए !
कहूँ परी या पगली कोई , मन कुछ समझ ना पाए !!

नाम के जैसी मीठी बोली , हँसी खुशी की ये रंगोली !
तीखे तीखे नैन नक्श , प्यारी प्यारी सूरत भोली !!
जान बचा भागे हर कोई , पर गुस्सा जब आ जाए !
कहूँ परी या पगली कोई , मन कुछ समझ ना पाए !!

कभी करे शैतानी कभी, बन जाए बहुत सयानी !
कभी हँसे पगली सी ख़ुद पे , करके कुछ नादानी !!
कभी मचल जाए बच्चों सी , गर ये जिद पे आए !
कहूँ परी या पगली कोई , मन कुछ समझ ना पाए !!

कई ख्वाब आँखों मे ले, मन अरमान सजाये है !
जीवन मै हो प्यार यही, आशा दीप जलाये है !!
मेरी दुआ हर ख्वाब हो पुरा , जीवन आनंद मय हो जाए !
हो परी या पगली कोई , मेरी दोस्त ये कहलाये !!

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

तिवारी भाई,मुझे लगता हे आप को लवेरिया हो गया हे जिस का इलाज नही,भगवान से दुया करते हे दुसरी तरफ़ भी यही हाल हो

रश्मि प्रभा... said...

इतने सुन्दर ढंग से बयान किया है,
कि वह परी भी लगती है,
और बावली भी.......
बहुत अच्छी रचना........