Friday, April 18, 2008

पश्चिम के सूरज !!



पश्चिम से जाते हुए दोस्त सूरज !
कुछ पल मे पहुँचो जब पूरब मेरे घर !!

तो पूछेगी माँ है मेरा लाल कैसा , छुकर के पैरों को उंनसे ये कहना !
महसूस करता वही हाथ सिर पे , जो जाते हुए रोते उसने रखा था !
अभी तक जुबान पे वही स्वाद गुड़ का , हाथोँ से जो आखरी चखा था !
कहना बहुत याद करता हूँ उसको !!
ऐ पश्चिम से जाते हुए दोस्त सूरज !

पिताजी मिलेगें वही चाय पीते , कुछ पल उनके संग बैठ लेना !
महसूस करना छुपी मन मे हलचल , है चिंता मेरी पर जताते नही है !
भरती है आंखे मुझे याद कर के , मगर बोलकर वो बताते नही है !
कहना हूँ अच्छा करें ना यूं चिंता !!
ऐ पश्चिम से जाते हुए दोस्त सूरज !

मिलेगा बिस्तर मै उन्नीदा भाई , उठा के कहना की दिन चढ़ चला है !
आंगन मे गीले कपड़े सुखाती , हँसके मिलेगी भोली सी बहना !
दोनों लड़े ना मेरे ख़त को लेकर , रखे ध्यान सबका उंनसे ये कहना !
कहना की आऊंगा इस बार जल्दी !!
ऐ पश्चिम से जाते हुए दोस्त सूरज !

मिल जाए गर चौक पे यार कोई ,मिलना गले और उससे ये कहना !
मिला ना कभी यहाँ दोस्त तुझसा , है महफ़िल यहाँ पर मजा वो नही है !
अकेला हूँ मै ना कोई संग साँथी , बिना यारों के जिंदगी कट रही है !
कहना की आऊंगा महफ़िल सजाने !!
ऐ पश्चिम से जाते हुए दोस्त सूरज !

आओगे कल तो पुछृँगा तुमसे , कोई घर मिला क्या !
पिताजी है कैसे कहा क्या है माँ ने , उठा था क्या भाई बहाना हँसी क्या !
मिली थी क्या नुक्कड़ पे यारो की महफ़िल , अभी तक है दिल मे यादें बसी क्या !
मिलुंग तुम्हे कल पूरब दिशा मै !!
ऐ पश्चिम से जाते हुए दोस्त सूरज !

1 comment:

12sdsds said...

Bhout acchi kavita hai.. aur "Amrit" ke dil ki baat ek daam saamne aati hai isme.. aur mujhe lagta hai is kavita ke saath Piyush "Amrit" ek naye aayaam, naye charan tak pounch gayi hai... kyonki ye kavita ek saachi kavita hai.. bina koi tuk bandi ke bhi ye ek nirant pravaha ke saaman lagti hai//