Saturday, April 5, 2008

नयी प्रीत लिए ये सहर आयी !!



फिर आज खुशी से मन महका, फिर आज ये आंखे भर आयी !
हे रात गयी काली थी जो , नयी प्रीत लिए ये सहर आयी !!

घनघोर घटाए छट सी गयी, चमके सुख का सूरज खुलके !
हे मन से गया तम दूर कही, यू उजला हुआ दर्पण धुलके !
फिर सागर मै खुशियाँ लहरे, भीनी भीनी सी है पुरवाई !!

हर भोर हुई उजली उजली, हर साँझ लगे महकी महकी !
ये दिन पगला सा लगता है, हर रात लगे बहकी बहकी !
है दिवस दिवस उल्लास लिए, पल पल मै है मस्ती छाई !!

ये मन उड़ता पंछी की तरह, इस तन मे जागा जोश नया !
बेहोश था जो बरसों से कही, जीवन को है आया होश नया !
टूटे थे जीवन तार कही, है नयी तरंगे फिर आयी !!
हे रात गयी काली थी जो , नयी प्रीत लिए ये सहर आयी !!

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