Monday, September 22, 2008

अब घर जाना है !!



बहुत हुआ अब घर जाना है !
खोये अपने उन सपनों को पाना है !!

छुटे हाथ झलकती आँखे, सिसकी भर भर चलती सांसे !
पोंछने फिर पलक के आंसू, अपने हाथ बड़ाना है !!

छोड़ी गलियाँ वो चौपाले, छत पे मंडली डेरा डाले !
शाम सुनहरी फिर करदे वो, महफ़िल यार सजाना है !!

प्यार से मिलते संगी साँथी, सिर्फ़ प्रेम की भाषा आती !
बोल जो मीठे भूल चुका मै, फिर होंठो पे लाना है !!

वक्त नही अपनों के खातिर, समय चाल समझा ना शातिर !
पास रहे जो बचे हुए पल, अपनों संग बीताना है !!

सब कुछ है पर मन है खाली, बेरंग होली सूनी दीवाली !
अबके दीवाली दीप जलाऊँ, होली रंग उड़ाना है !!

फ़िर अपनों के संग रहूँगा, मन का हर एक दर्द कहूँगा !
मिला नही बरसों से जो, खोया प्यार पाना है !!

1 comment:

Deepti Itkar said...

very nice poem...true feelings !!