Wednesday, August 6, 2008

बदला है ये वक़्त !!



नही अपना कोई साँथ बदला है ये वक़्त !
हर तन्हा कटे रात बदला है ये वक़्त !!

हर दम संग रहे जो बिछडे ना कभी !
एक पल को नही साँथ बदला है ये वक़्त !!

जेब मे रख फुर्सत घूमते थे कभी !
आज आता नही है हाथ बदला है ये वक़्त !!

जीती बाजी भी एक पल मे हार जाता है !
आदमी की क्या औकात बदला है ये वक़्त !!

साँथ सुख मे थे वो दुःख मे नही !
सो गए उनके जस्बात बदला है ये वक़्त !!

उसको बस एक झलक देखने का अरमा था !
पर ना हो पाई मुलाकात बदला है ये वक़्त !!

आज तन्हा है जो कल सब का प्यारा था !
देदो कोई इश्क की खैरात बदला है ये वक़्त !!

लम्बी है रात फ़िर भी सहर तो आएगी !
बदलेंगे तेरे भी हालत बदला है ये वक़्त !!

कवीता !!



तुम हो मेरा प्रेम कवीता मै कवि प्रियतम तेरा !
मेरी कल्पना से तुम हो , तेरा ही ह्रदय बसेरा !!

खुश होता तो तुमको लिखता फूल क्यारी बगिया !
दुःख मे आंखे नम होती, तुम होती अश्रु नदिया !!
मन मस्ती मे हो चंचल , तुम बनती पंछी डेरा !

जब अपनों से दूर रहा तुझमे ही याद बसाई है !
चुप रहकर भी तेरे जरिये अपनी बात सुनाई है !!
तुम संग तन्हा रात लिखी , यादों से भरा सवेरा !

तुझमे बचपन की पगडन्डी , जीवन के संघर्ष लिखे !
गोद मे सर रखकर सहलाते माँ के वो स्पर्श लिखे !!
ख्वाबों मे उस परी का चलना हाथ थाम कर मेरा !

मै मर जाउँगा !!





अबके बरस भी गर ना बरसी मै मर जाउँगा !
अपने बच्चों को भूखा देख ना पाउँगा !!

हर बरस आस मे तेरी करता रहा बुआई !
तेरे बिन प्यासी फसलें आस लिए मुरझाई !!
जम के तुम एक बार तो बरसो मै तर जाऊँगा !

मन दुःख के बादल उमड़े आसमान है खाली !
आँखों से सावन बरसे बरखा ना आने वाली !!
गर तुम खेत भिगो ना पाई, मै माटी मिल जाऊंगा !!

पिछला कर्ज चुकाने मे गिरवी रखी जमीन !
आई ना इस बार फसल हो जाऊँ खेत विहीन !!
अन्न था जो घर सब बो डाला अब क्या खाऊँगा !!

भूख से बच्चे मुरझाये भागवान है चिंतित !
इश्वर को दया न आये पिघले नही है किंचित !!
लगता सब को लेकर भगवन पास तुम्हारे आऊंगा !!