Wednesday, November 26, 2008

विजय शिखर !!


बहुत सी आस ले ये मन चला पाने शिखर,
मगर दिल मे है जाने कौन सा अंजाना डर !
कही आंधी न आजाये न खा जाऊँ मै ठोकर ,
समय है कम सफर लंबा बचे है कुछ पहर!

बहुत से हाथ मेरे हाथ को थामे हुए है ,
बहुत से लोग मुझ को अपना सा माने हुए है !
कई रिश्तों की जंजीरे मेरे पैरो मे है ,
कई अनजाने मुझ को दोस्त सा जाने हुए है !
मगर फिर भी है सूनापन मन मे कही,
साँथ काफिला पर लगे तनहा सफर !!

कई छोटे बड़े ख्वाब आँखो मे बसते,
कई अरमान मेरे मन मे रोज सजते !
कई उम्मीद के घरोंदे बन गए है ,
न पाई खुशी के सुर कानो मे बजते !
मगर अंजाना सा डर मन मे है ,
न जाने कौन होगा इस सफर मे हमसफ़र !!

है हर बात का अहसास पर जारी सफर,
न चिंता आए कोई भी मुश्किल अगर !
न जाने कौन सी ताकत है ये मन लिए ,
न लगता कोई भी बाधा से इसको डर !
है बस आस की पूरी हो मांगी दुआ जो ,
मिले जो चाहे कुछ पाना विजय शिखर !!

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।बधाई।

है हर बात का अहसास पर जारी सफर,
न चिंता आए कोई भी मुश्किल अगर !
न जाने कौन सी ताकत है ये मन लिए ,
न लगता कोई भी बाधा से इसको डर !