फिर जागा ईमान मेरा सोया सोया !
दर्पण मे देखा इंसान मेरा खोया !!
दर्पण मे देखा इंसान मेरा खोया !!
भूला था हस्ती अपनी अब याद मुझे !
फोड़ा घड़ा अभिमान का सर रख जो ढोया !!
यूँ बदले हालात कि हँसना भूल गये !
रोते रोते सोया जग के फिर रोया !!
दाग न झूठी शोहरत का कोई रह जाये !
अपने आंसू मन का दर्पण फिर धोया !!
आयी फसल तो मुह लटका के बैठा क्यों !
कटेगा तू अब जो तुने तब बोया !!
जाते जाते दर्पण वो दिखला ही गया !
चहरा देख के असली अपना मै रोया !!
दिल पे निशा जो छोड़ा उसने कैसे मिटे !
हर एक कोना , आंगन , बिस्तर सब धोया !!
फोड़ा घड़ा अभिमान का सर रख जो ढोया !!
यूँ बदले हालात कि हँसना भूल गये !
रोते रोते सोया जग के फिर रोया !!
दाग न झूठी शोहरत का कोई रह जाये !
अपने आंसू मन का दर्पण फिर धोया !!
आयी फसल तो मुह लटका के बैठा क्यों !
कटेगा तू अब जो तुने तब बोया !!
जाते जाते दर्पण वो दिखला ही गया !
चहरा देख के असली अपना मै रोया !!
दिल पे निशा जो छोड़ा उसने कैसे मिटे !
हर एक कोना , आंगन , बिस्तर सब धोया !!