तुमसे हि सम्रधि अपनी , तुमसे जीवन कि गहराई |
वन्श व्रक्ष फल फूल रहा है , क्योकि तुम इसकि जड़ "बाई" ||
तुमने पहला कदम बडाया, परिवर्तन का बीज लगाया |
आज घना है वन्श व्रक्ष, नव पीडी को देता छाया |
एक तुम्हारी पहल ने "बाई" , हमको आज दुनियां दिखलाई ||
तुमने सदा प्रेम बरसाया , सबको अपने साँथ मिलाया ।
एक डोर से बाँधा सबको, संयुक्ता का पाठ पड़ाया ।
एकजुट परिवार खड़ा है , तुमने ऐसी सीख सिखाई ॥
छोड़ चली तुम आज हमें , यादों के संग रह जाऊंगा ।
"बाई से कह दूँगा " अब ये, ना किसी से कह पाउँगा ।
हाथ जोड़ आँखों में आंसू , देता तुझ को पूर्ण विदाई ॥
नहीं साँथ ये सोच के अब , मन व्याकुल हो जाता है ।
सूना आँगन , खाली कमरा ,बस तेरी याद दिलाता है ।
गर पुनर जन्म दो ईश्वर, मेरे घर ही आये "बाई" ॥
वन्श व्रक्ष फल फूल रहा है , क्योकि तुम इसकि जड़ "बाई" ||